खंडहर
कहते हैं खंडहर को,
बरसात ने मारा।
अब इसको सम्हालो,
काम ये तुम्हारा।
वो भूल जाते हैं,
जिम्मेदारियां अपनी।
सारी लोहें चुरा ली,
बनकर के नकारा।
टपकी जब एक बूंद,
तो छाया गया नहीं।
गिरता गया महल,
सम्हाला गया नहीं।
कोठी बनाके अपनी,
अब रहने लगे हुजूर।
कहें खंडहर सम्हालो,
यही नशीब है तुम्हारा।।
— प्रदीप कुमार तिवारी
करौंदी कला, सुलतानपुर
7537807761