मुक्तक/दोहा

दोहे वर्तमान के

अंतर्मन में घुल गया,विष बनकर आघात !
सुबहें गहरी हो गयीं,घायल है हर रात !!
धुंआ हो गयी ज़िन्दगी,हुई ख़त्म सब म्याद !
नहीं शेष उत्साह अब,बढ़ता नित अवसाद !!
सिसक रहा है वक़्त अब,निकल रही है आह !
हर कोई अब दीन है,नहीं कोय अब शाह !!
कैसे हैं अब लोग सब,कैसा है यह दौर !
तंत्र हो गया मोथरा,करो ज़रा तो गौर !!
जीना चाहे जो “शरद”,उसको आती मौत !
मरना चाहोगे अगर,मौत बनेगी सौत !!
हँसना लगता खोखला,थोथी हर मुस्कान !
फीकी सारी शान है,है थोथी अब आन !!
प्यार -वफ़ा झूठे हुये,सस्ता है अब नेह !
आशाएँ रोने लगीं,बिकती है अब देह !!
दुनिया दरकी बीच से,भाव हुये सब भग्न !
मानव अब तो हो गया,निष्ठुरता में मग्न !!
सांसें घुटने लग गयीं,धूमिल है अब काल !
शापित यह युग हो गया,तिरते कई सवाल !!
अंतहीन कोहराम है,सभी ओर है शोर !
ना ही अब उल्लास है, ना ही नाचे मोर !!
प्रो.शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]