व्यंग्य – वंदेमातरम सुनाएं वो असली नेता होए
भारतीयों को देशभक्ति साल में दो ही दिन याद आती है। एक छब्बीस जनवरी और दूसरी पन्द्रह अगस्त को। बाकि के दिनों में देशभक्ति को गहरी नींद में थपकियां देकर सुला दिया जाता है। इन दिनों देश में वंदेमातरम और भारत माता की जय के नारे खूब प्रचलन में है। हर कोई इन दोनों नारों के नाम पर देशभक्ति और देश दोनों को बेच रहा है। आये दिन हमारे चुने जनप्रतिनिधि वंदेमातरम को लेकर तरह-तरह के फरमान जारी करके अपने को सबसे बडे देशभक्त का तमगा देने की कोशिश में लगे रहते हैं। लेकिन वंदेमातरम को लेकर नेताओं का गणित भी कोई खास अच्छा नहीं है। जब नेताजी से एक लाइव डिबेट शो में वंदेमातरम गाने को कहा गया तो नेताजी की सारी देशभक्त सामने आ गयी। बेचारे नेताजी कहां पूरा वंदेमातरम गा पाते, उनकी तो वंदेमातरम कहने में ही सांसे फूल गयी और पेट की सारी हवा निकल गयी। अधिकांश नेताओं का यही हाल है। किसी को पूरा वंदेमातरम कंठस्थ याद नहीं है। फिर भी वे वंदेमातरम के नाम पर अपनी राजनीति चमका रहे है। फरमान जारी कर रहे है। आये दिन सुनने को मिलता है कि भारत में रहना है तो वंदेमातरम कहना है वरना पाकिस्तान जाना है। तो अब बताईये नेताजी आपको कहां जाना है ? खैर ! हमारे नेताओं को केवल वंदेमातरम ही तो नहीं आता बाकि सबकुछ उन्हें मुंह जुबानी याद है। देश के इतिहास और भूगोल में तो वे पीएचडी है। फिर भले पृथ्वी को वे गोल की बजाय आयताकार ही क्यूं न बता दे। हमारे नेताओं को क्या नहीं आता की जगह ये पूछना चाहिए कि हमारे नेताओं को आता क्या है ? तो हमारे नेताओं को सफेद उजले नील में डाले हुए कपडे पहनना आता है। भाईयों और बहनों कहकर वायदे करने की कला के वे महारथी है। हमारे नेताओं में घोटाले पर घोटाले करने की गजब की क्षमता है। हमारे नेताओं को जनता के फेंके गये टमाटर, पत्थर और गालियां खाने का हुनर आता है। हमारे नेता सच को झूठ और झूठ को सच बनाने में पारंगत है। हमारे नेता केवल टोपी पहनते ही नहीं बल्कि टोपी को बडी अच्छी तरह से घूमाना भी जानते है। हमारे नेताओं को खाना आता है। खा-खाकर देश का विकास करना आता है। यूं कहे कि हमारे देश का प्रत्येक नेता खाऊमंत्री है। हमारे नेता चत्मकार पर चत्मकार करते है। वे धन का बेहतरीन उपयोग करना जानते है। है ना ! हमारे नेता कितने अच्छे ? जिस तरह सरकार ने चुनावों में लडने के लिए आठवीें व दसवीं पास की शिक्षा अनिवार्य कर दी है। उसी तरह नेता बनने के लिए योग्यताओं की श्रेणी में वंदेमातरम को भी अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। ताकि वंदेमातरम तो इस बयाने लोगों को याद कराया जा सके। कितनी खुशी की बात है ना ? हमारे नेताओं को वंदेमातरम नहीं आता और वे हर साल झंडारोहण करके अपनी शान बढाते रहते है। यह भी सच है कि भारत के अधिकांश लोगों को भी वंदेमातरम याद नहीं है। याद तो उन्हें भी नहीं है जो वंदेमातरम वंदेमातरम कहकर उपद्रव करते है, हंगामा बरपातेे है। वैसे भी वंदेमातरम और गरीब में कोई खास अंतर नहीं है। मुल्क में लंबे समय से दोनों का भरपूर इस्तेमाल करके हर कोई अपनी दाल गला रहा है।
— देवेंद्रराज सुथार