ग़ज़ल
प्यार की राह तो दुश्वार है आसां होना
आशिकों, ये भी मयस्सर नहीं यजदां होना |
आज इंसान की किस्मत है परीशाँ होना
कोशिशें भी करे मुस्किल है गुलिस्ताँ होना |
रात मेरी, नई राहें मेरी, कहती नारी
दानवों की धरा पर और क्या उरियाँ होना ?
कर में खंज़र लिए बैरी, गले में डाला हार
बात कुछ ऐसी हुई होश कि हैराँ होना |
नूर तो आ गया मुख पर, मिला जो आलम्बन
दोस्ती जो हुई, जैसे अदू यकजाँ होना |
बस यही भाग्य तुम्हारा बने जब आतंकी
फ़क्त गोली से मरो या वही जिन्दां होना |
सत्य के साथ ही वह क़त्ल किया निष्ठा को
इम्तिहाँ बे-हया की ऐसी परीशाँ होना |
आज जिस स्थान में मानव रखा पग ‘काली’
आदमी के लिए संभव नहीं इंसाँ होना |
शब्दार्थ : यजदां = आशावादी, आस्तिक
परीशाँ=व्याकुल, शर्मिन्दा ; उरियाँ =नग्न होना
जिन्दां= काराबास; यकजाँ=घनिष्ट
कालीपद ‘प्रसाद’