गज़ल
दिलफरेब सी ये शाम-ओ-सहर फिर मिले ना मिले
तेरी नज़रों से मेरी दीदा-ए-तर फिर मिले ना मिले
आए ही गए हो तो कुछ देर बैठो, बात करो
तंग गलियों में मेरा छोटा सा घर फिर मिले ना मिले
आज कह लेने दो खुदा से मुझे हर हसरत
मेरी दुआओं में दोबारा असर फिर मिले ना मिले
थामकर हाथ मेरा मोड़ तक चलो तो सही
वीरान राहों में कोई हमसफर फिर मिले ना मिले
दिल तोड़ने से पहले मेरा सोच लो इक बार
कोई और मुझसे बेहतर फिर मिले ना मिले
— भरत मल्होत्रा