कविता

अपना घर अपना होता है

अपना घर अपना होता है,
ये जीवन का सपना होता है।

बड़े शहर में घर का सपना,
केवल इक सपना होता है।
बड़े भाग्य होते हैं उनके,
जिनका घर अपना होता है।

आवक-जावक गुणा-भाग में,
जीवन भर खपना होता है।

कुछ सपने आँखों में होते,
कुछ पूरे कुछ आधे होते।
कहीं विवशता मजबूरी, तो
कहीं प्यार के वादे होते।

बड़े प्यार से तिनका-तिनका,
दीवारें चिनना होता है।

जीवन भर की आपाधापी,
इक छोटा सा घर दे पाती।
कभी-कभी ऐसी कोशिश भी,
आधी की आधी रह जाती।

दो पैसे में एक बचाना,
आधे पेट कभी सोना होता है।

जिस घर को हम कहते अपना,
सच में तो होता है सपना।
मिथ्या जग, मिथ्या है माया,
कुछ भी नहीं जगत में अपना।

छोड़ झमेला चौरासी का,
राम नाम जपना होता है।

आनन्द विश्वास

आनन्द विश्वास

जन्म की तारीख- 01/07/1949 जन्म एवं शिक्षा- शिकोहाबाद (उत्तर प्रदेश) अध्यापन- अहमदाबाद (गुजरात) और अब- स्वतंत्र लेखन (नई दिल्ली) भाषाज्ञान- हिन्दी, अंग्रेजी, गुजराती। प्रकाशित कृतियाँ- 1. *देवम* (बाल-उपन्यास) (वर्ष-2012) डायमंड बुक्स दिल्ली। 2. *मिटने वाली रात नहीं* (कविता संकलन) (वर्ष-2012) डायमंड बुक्स दिल्ली। 3. *पर-कटी पाखी* (बाल-उपन्यास) (वर्ष-2014) डायमंड बुक्स दिल्ली। 4. *बहादुर बेटी* (बाल-उपन्यास) (वर्ष-2015) उत्कर्ष प्रकाशन मेरठ। PRATILIPI.COM पर सम्पूर्ण बाल-उपन्यास पठनीय। 5. *मेरे पापा सबसे अच्छे* (बाल-कविताएँ) (वर्ष-2016) उत्कर्ष प्रकाशन मेरठ। PRATILIPI.COM पर सम्पूर्ण बाल-कविताएँ पठनीय। प्रबंधन- फेसबुक पर बाल साहित्य के बृहत् समूह *बाल-जगत* एवं *बाल-साहित्य* समूह का संचालन। ब्लागस्- 1. anandvishvas.blogspot.com 2. anandvishwas.blogspot.com संपर्क का पता : सी/85 ईस्ट एण्ड एपार्टमेन्ट्स, न्यू अशोक नगर मेट्रो स्टेशन के पास, मयूर विहार फेज़-1 नई दिल्ली-110096 मोबाइल नम्बर- 9898529244, 7042859040 ई-मेलः [email protected]