कंप्यूटर युग में सुविधाएं और दुरूपयोग
विज्ञान की प्रगति , नए नए अविष्कार , नई खोज आदि सब इंसान के लिए वरदान है, हर नए अविष्कार या खोज के साथ मानव जीवन सुविधाजनक होता जा रहा है , आज कंप्यूटर युग ने भारी भरकम दस्तावेजों, आदि को लगभग समाप्त कर दिया है, घर बैठे ही आप कितने ही ज़रूरी काम कंप्यूटर और मोबाइल के ज़रिये निपटा लेते हैं, जहाँ पहले किसी काम के लिए घंटो लाइन में लगना पड़ता था , आज वह चंद मिन्टो में ही हो जाता है, विशेष कर दूर संचार में तो इस कंप्यूटर युग ने असंभव को भी संभव करके दिखा दिया है, आपको किसी भी प्रकार कि कोई जानकारी चाहिए कंप्यूटर मदद करने को हाज़िर है,
विज्ञान की प्रगति , नए नए अविष्कार , नई खोज आदि ने जितना लाभ इंसान को दिया है, लगता है इनका दुरूपयोग इस से ज्यादा नुक्सान भी कर रहा है, आजकल के युवा वर्ग और बच्चो में तो इसके दुरूपयोग की कोई सीमा ही नहीं,पढ़ाई लिखाई, खेल कूद, स्वस्थ मनोरंजन आदि सब पीछे छूट गए हैं और अश्लीलता युक्त बेकार की बातों में इनका अधिक से अधिक इस्तेमाल हो रहा है, आपसी सम्बन्ध तक प्रभावित हो रहा हैं, और पारवारिक और सामाजिक जीवन पर भी इनका गहरा असर पड़ रहा है, आजकल जिसे देखो चलते फिरते , उठते बैठते , गाड़ी चलाते हुए , सैर करते हुए , घर में ऑफिस में, बस घंटो मोबाइल पर फ़िज़ूल बातें करना आम बात हो गई है, समय की कितनी बर्बादी है, सबसे अधिक ध्यान देने वाली बात यह है की हमें नहीं भूलना चाहिए कि रोटी , कपडा , मकान, सुरक्षा और स्वास्थ्य फिर शिक्षा और मनोरंजन — यह सब हर इंसान की बेहद ही बुनियादी ज़रूरते हैं, सबसे पहले इनका प्रबंध होना चाहिए और सबसे पहले इनकी चिंता होनी चाहिए, इन्हे कम से कम दाम में आम आदमी तक पहुँचना हर सरकार की पहली ज़िम्मेवारी होनी चाहिए, और हर लक्ज़री Luxury पर टैक्स लगा कर उसे पूरा करना चाहिए. लेकिन देखने में यह आ रहा है की आज गरीब से गरीब आदमी की भी सबसे बड़ी और पहली ज़रुरत मोबाइल फ़ोन / TV /कंप्यूटर बन गयी है.जिसकी साइकिल की औकात नहीं वह भी तिकड़म लगा कर स्कूटर /कार तक लेने की सोचता है…क्योंकि इन्हे आसान किश्तों पर उपलब्ध करने कि होड़ लगी है, घर में खाने पीने के सामान कि कमी हो पर किश्त देने कि मज़बूरी सामने है, ऊपर से बच्चे भी इन सुविधाओं के कारण बिगड़ जाते हैं,आज मेहनत कर मज़दूर, रिक्शा चालक, यहाँ तक भिखारी भी मोबाइल लिए घूमते हैं,
मुझे विज्ञान कि इन उप्लाभ्दियों पर नाज़ है, पर इसका दुरूपयोग नहीं होना चाहिए और न ही इंसान को इनका गुलाम बन कर रह जाना चाहिए,
एक छोटी सी कविता से अपनी बात समाप्त करता हूँ..
माँ -रोते हुए
घर में गम ही गम है,आज घर में आटा नहीं है,
आज घर में चावल नहीं है,आज घर में दूध नहीं है,
आज घर में तेल नहीं है ,स्कूल की फीस नहीं दी,
बेटे की कापी नहीं आई, तन ढकने को कपडा कम है,
घर में गम ही गम है,भूखा माँ से बार बार पूछता है –
माँ,बापू कब आएगा, माँ,बापू कब आएगा,
माँ -रोते हुए–
मोबाइल रीचार्ज कराने गया है,
बस जल्दी ही आ जायेगा .
जय प्रकाश भाटिया
२१/११/२०१७