गज़ल
बुजुर्गों की तेरे हाथों से ना तौहीन हो जाए
तेरी बातों से कोई दोस्त ना गमगीन हो जाए
मिल जाए अगर इसमें किसी मज़लूम का आँसू
घड़ी में दरिया मीठे पानी का नमकीन हो जाए
उदासी में किसी की घोल दें थोड़ी सी खुशियां तो
दिन अपना भी आज का ये बेहतरीन हो जाए
कत्ल मेरा मेरे कातिल तू एहतियात से करना
कहीं ना खून से लथपथ तेरी आस्तीन हो जाए
कड़वा है ज़ायके में बहुत है फायदेमंद लेकिन
सच कहने का, सुनने का जो तू शौकीन हो जाए
बचा सकती नहीं ताकत कोई फिर उस हुकूमत को
जहां हक माँगना भी जुर्म इक संगीन हो जाए
— भरत मल्होत्रा