लेख
सीखना एक जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है। हम इस संसार में एक कोरे कागज़ की भाँति आते हैं। पहले ही दिन से हम सीखना प्रारंभ कर देते हैं जो हमारे अंतिम दिन तक चलता रहता है। कहते हैं मनुष्य जैसा देखता है वैसा सीखता है और देखता किसे है? उन व्यक्तियों को जो उसके आसपास रहते हैं। माता-पिता, गुरू, मित्र, बंधु-बांधव सबसे हम कुछ ना कुछ सीखते हैं। संगति का प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति पर पड़ता है। हम अपने अधिकतर गुण-अवगुण अपने निकटतम व्यक्तियों से ही ग्रहण करते हैं। जो विशिष्टताएँ आपके निकटवर्तियों के भीतर मौजूद है, उनके प्रभाव से वही विशिष्टताएँ आपके भीतर समा जाएँगी। फिर वो विशिष्टताएँ चाहे सबल हों या दुर्बल, उच्च हों या नीच, अच्छी हों या बुरी।अगर वे सुसंस्कृत हैं, तो आप भी सभ्य व्यवहार करेंगे । वे सद्गुण संपन्न हैं, तो आप भी सदाचारी होंगे ।लेकिन अगर वे निराशावादी एवं कलुषित विचारों वाले हैं, तो आप भी वैसे ही हो जाएँगे। इसलिए अपना मित्र-वर्तुल बड़ी सावधानी से चुनिए। उन्हीं लोगों के साथ रहने का प्रयास करिए जो आप के भीतर सकारात्मकता का संचार कर सकें।
मंगलमय दिवस की शुभकामनाओं सहित आपका मित्र :- भरत मल्होत्रा।