गज़ल
बात से बात चले तो ये स्याह रात कटे
चाँद कुछ और ढले तो ये स्याह रात कटे
सोए हुए सूरज से माँग करके थोड़ा सा
उजाला मुँह पे मले तो ये स्याह रात कटे
सीने में आँधियों से लड़ने की हिम्मत रखके
चिराग कोई जले तो ये स्याह रात कटे
लफ्जों की सुई में पिरो के धागे आँसू के
कोई मेरे ज़ख्म सिले तो ये स्याह रात कटे
जिया जाता नहीं है तेरे बिना मुझसे अब
आके लग जा तू गले तो ये स्याह रात कटे
दुनिया भर की नेमतों का क्या करूँगा मैं
मेरा महबूब मिले तो ये स्याह रात कटे
— भरत मल्होत्रा