ग़ज़ल
रोना मत ,
खोना मत !
हद से ज़्यादा,
सोना मत !
कांटे राह में,
बोना मत !
ख़ुदगर्ज़ तुम,
होना मत !
प्रेम, वफ़ा को,
धोना मत !
अपनेपन को,
खोना मत !
वक़्त बुरा पर,
रोना मत !
“शरद” और कुछ,
होना मत !
— प्रो. शरद नारायण खरे