गज़ल
बिखर के बीज की तरह चमन के काम आए
मिल के खाक में अपने वतन के काम आए
रात भर जलते रहे चाहे चिरागों की तरह
हमें खुशी है कुछ तो अंजुमन के काम आए
मेरी गज़ल का असली है फायदा तब ही
किसी दर्द का मरहम जो बन के काम आए
हो सके तो थोड़ी नेकियों का कपड़ा बुन
कभी ये पैरहन तेरे कफन के काम आए
मुझे फिर मौत का कोई भी गम नहीं होगा
जो मेरी ज़िंदगी चैन-ओ-अमन के काम आए
— भरत मल्होत्रा
बेहद उम्दा वाहहहहहह