दर्द
आंसुओं को जबसे हमने पीना सीख लिया ,
लोगों ने कहा उसने जीना सीख लिया ।
अल्फाजों को ढालकर गम के समंदर में ,
हमने जबसे दर्द को सीना सीख लिया ।
बन जाता है मरहम दर्द का गहरा सागर भी ,
लड़कर तूफानों से हमने चलना सीख लिया ।
जज्बातों की कद्र करेगा क्या कोई इस दुनिया में ,
कांटों पर चलकर मंजिल को पाना सीख लिया ।
नदिया की धारा जैसी हैं विपरीत दिशाएं जीवन की ,
कश्ती हैं हिम्मत की ,चट्टानों से लड़ना सीख लिया ।
— वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़