यूँ ज़रूरत तो हमारी भी किसी से कम नही
यूँ ज़रूरत तो हमारी भी किसी से कम नही
साथ लेकिन हम हवाओं के बहें तो हम नही
नफ़रतों की लाख़ दीवारें उठाए ये जहां
कर सके तुमको ज़ुदा हमसे किसी में दम नही
जिस तरफ़ भी देखिये गुलज़ार है सारी धरा
अब चले आओ सनम इनकार का मौसम नही
रोकिये बढ़ता हुआ ये नफ़रतों का जलजला
चाहिये घर में किसी के अब कहीं मातम नही
धर्म का दीपक जले बस रोशनी के वास्ते
मजहबों के नाम पर फैले जहां में तम नही
चाहता हूँ होठ पर मुस्कान आँखों मे चमक
काश चहरे पर किसी के भी दिखे अब ग़म नही
हाथ बच्चों के किताबें हो बड़ों के काम हो
काश हाथों में रहे पत्थर नही अब बम नही
सतीश बंसल
२९.११.२०१७