गज़ल
जिसकी मौत पर अफसोस कायनात करे
वो शख्स फिर किसलिए गम-ए-हयात करे
जीते जी यहां कुछ ऐसे काम कर जाओ
कि तुम्हारे बाद भी कोई तुम्हारी बात करे
मेरे मालिक के लिए कुछ भी नहीं नामुमकिन
एक ही वक्त कहीं दिन तो कहीं रात करे
हर आदमी यहां खुद गलतियों का पुतला है
किसे ये हक है वो किसी से सवालात करे
जीतनी है सभी को दुनिया सिकंदर बनकर
नहीं फुर्सत किसी को खुद से मुलाकात करे
निकल तो सकता है पानी पत्थरों से मगर
रहने दो अब ऐसी कौन खुराफात करे
— भरत मल्होत्रा