“ऋतुएँ तो हैं आनी जानी”
कुहरा करता है मनमानी।
जाड़े पर छा गयी जवानी।।
नभ में धुआँ-धुआँ सा छाया,
शीतलता ने असर दिखाया,
काँप रही है थर-थर काया,
हीटर-गीजर शुरू हो गये,
नहीं सुहाता ठण्डा पानी।
जाड़े पर छा गयी जवानी।।
बालक विद्यालय को जाते,
कभी न मौसम से घबराते,
पढ़कर सब काबिल बन पाते,
करो साधना सच्चे मन से,
कहलाओगे ज्ञानी-ध्यानी।
जाड़े पर छा गयी जवानी।।
कहता पापी पेट हमारा,
बिना कमाए नही गुजारा,
नहीं काम बिन कोई चारा,
श्रम करने से जी न चुराओ,
ऋतुएँ तो हैं आनी जानी।
जाड़े पर छा गयी जवानी।।
चूल्हे और अलाव जलाओ,
गर्म-गर्म भोजन को खाओ,
काम समय पर सब निबटाओ,
खाना-सोना और कमाना,
जीवन की है यही कहानी।
जाड़े पर छा गयी जवानी।।
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक)