गीतिका/ग़ज़ल

गजल

पायल पहने ऩज़रों ने उन्हे क्या देखा
थम गई ऩज़रे, ऩज़रों को बंधा देखा।

खनकी दिवारे दिलकी पायल से उनकी
बिखरे हुये दिल को उनका हुआ देखा।

ख़्याल आया कि क्या नसीब है पायल के
सफेद धातु में चंदन लिपटा हुआ देखा।

ना सुनी खनक और ना सुनी छम छम
फिरभी सरगोशी में कानों को गुना देखा।

नज़ाकत पैरों की उनकी शब्दों क्या लिखे
लचकती कमान पर बंधन पड़ा हुआ देखा।

आये थे वो दर्द बयां करने पहन के पायल
तब से ही ऩज़रों ने मेरी पैरों में खुदा देखा।

यह इबादत है दीपू की अल्फाज न समझो
शब्दों में मेरे लौगों ने तेरा सजदा हुआ देखा।

— कुलदीप पंड्या

कुलदीप पंड्या

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