गोंगा स्किमबाइक
भैय्या-भैय्या, देखो तो, अखबार में आपका फोटो छपा है. कितने सुंदर लग रहे हैं आप!
‘अच्छा-अच्छा, ज्यादा हल्ला मत कर. अम्मा-बाबा को शांति से पूजा करने दे, और सुन, ये अखबार यहां रख जा.” प्रॉजेक्ट डिजाइन में द्वितीय वर्ष के 24 वर्षीय छात्र गोंगा ने कहा. अखबार तो गोंगा के हाथ में ही रह गया. उसकी आंखें तो कुछ और देख-सोच रही थीं.
बाकी लोगों की बेशक दो ही आंखें होती होंगी, लेकिन गोंगा नवीन कुमार की अनगिनत आंखें थीं. यह सब गोंगा को कहां पता था! वह तो अपने काम में शिद्दत से तल्लीन रहता था. उसका ध्यान पढ़ाई पर तो था ही, पर्यावरण और महंगाई पर भी उसकी पैनी नज़र थी. देश की नदियों की गंदगी से भी वह भलीभांति वाकिफ था. ईंधन की कमी से जूझते देश को वह नजर अंदाज़ कैसे कर सकता था!
किफायत तो उसे घुट्टी में पिलाई गई थी. इसलिए उसने नदियों के पानी से कचरा निकालने के लिए तेल के खाली डिब्बों, साइकल के कुछ पार्ट्स, प्लास्टिक और लकड़ी की मदद से एक मशीन तैयार की थी. इस गोंगा स्किमबाइक की कीमत 30 हजार रुपये है, जब कि इस वक्त जिन मशीनों का इस्तेमाल नदियों की सफाई के कार्यों में किया जा रहा है, उनकी कीमत करोड़ों रुपये है. खाली डिब्बों की वजह से मशीन बिना किसी मेहनत और सुरक्षापूर्वक पानी पर तैरती रहती है. यह सिर्फ पानी में संभलकर तैरती ही नहीं है बल्कि यह मुहानों से कचरा भी बाहर करती है. यह सब गोंगा की लगन का नतीजा था, जो आज अखबार में छपा था.
गोंगा स्किमबाइक ने देश के विकास की गति के बढ़ते रहने की राह प्रशस्त कर दी थी.
बहुत बढ़िया प्रेरक कथा के लिए आभार आदरणीय बहनजी ! सचमुच किफायत करना उसकी घुट्टी में पिलाया गया रहा होगा तभी तो करोड़ों की लागत वाली भारीभरकम मशीन जैसी मशीन उसने मात्र तीस हजार रुपये की लागत में बना लिया और इस उपलब्धि से ही संतुष्ट न होकर उसकी निगाहें कुछ और बेहतर करने को प्रयासरत हैं । बहुत सुंदर कथा के लिए धन्यवाद !
प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको ब्लॉग बहुत सुंदर लगा. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
प्रेरक लघुकथा !
प्रिय ब्लॉगर विजय भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको ब्लॉग बहुत सुंदर लगा. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. यह लघुकथा प्रेरक है. यह एक समाचार पर आधारित है-
पानी से कचरा निकालने के लिए तेल के डिब्बों से बना दी मशीन
ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
बहुत ही नेक काम जो भविष्य में इन्कलाब ला सकता है . लीला बहन ,लघु कथा में बहुत बड़ी उप्लभ्दी नज़र आती है .
प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको रचना बहुत सुंदर लगी. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
यह लघुकथा एक समाचार पर आधारित सत्यकथा भी है.