गज़ल
बनी अब जिंदगी हो भार तय है
अदालत में हमारी हार तय है|
लगा ये आदते में सोच फ़ानी
मिला जो भी भला किरदार तय है |
पहन कर जो दिखे दस्तार सर पे
असल नेता हुआ सरदार तय है |
दिखे पीछे छुपे दीवार तय है
करे मालिक लिखा एतवार तय है|
दिखे सोदा खड़े हकदार जमा है
करे नफरत भरी दरकार तय है |
वचा अब ना कही अखबार में ये
लिखी सबमे लुटे-मारी ही तय है |
बढ़ी रफ्तार तो जाना नतीज़ा
भरा वाजार में हकदार तय है |
— रेखा मोहन