“रमेश छंद”
बरसत मेघा नयनन मूँद
विचरत भौंरा कलियन बूँद।।
मधुरम वाणी अनहद प्रीत।
बिहरत प्राणी समझत रीत।।
घट घट ब्यापे नवतर सोच।
कलरव गूँजें नटखट चोंच।।
लहरत झूला बगियन फूल।
बिसरत नाही सिहरत शूल।।
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी
बरसत मेघा नयनन मूँद
विचरत भौंरा कलियन बूँद।।
मधुरम वाणी अनहद प्रीत।
बिहरत प्राणी समझत रीत।।
घट घट ब्यापे नवतर सोच।
कलरव गूँजें नटखट चोंच।।
लहरत झूला बगियन फूल।
बिसरत नाही सिहरत शूल।।
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी