ग़ज़ल
लगाइए बोली मेरे अरमान बिक रहे हैं
महफ़िल में तेरी आके बेदाम दिख रहे हैं
जागीर ए मोहब्बत सब उनके नाम की
दर पे उनके जाके सुबह शाम लुट रहे हैं
अच्छा है आपने यूं दिल तोड़ दिया मेरा
अब वफा ए दिल के सब काम छुट रहे हैं
नाज ए जिगर को तेरे क़दमों में उछाला
नज़र ए करम हुआ ये सरेआम झुक रहे हैं
कैसे नज़र मिलाएं क्या दास्तां सुनाएं
सुनो होठों पे आते आते पैगाम रुक रहे हैं
चाहत मिली न जानिब बदनाम ही हुए यूँ
दिल से हाथ धोकर बदनाम छुप रहे हैं
— पावनी दीक्षित जानिब, सीतापुर