ग़ज़ल
सब बताये न हुई इनको तसल्ली न सही
दोस्त तो और बहुत, पर दिली वो भी न सही
जिंदगी काट ली है सुख से सफलतापूर्वक
दोस्त! तुम सा सभी आनंद, अमीरी न सही
रहनुमा खाते हैं रबड़ी–ओ- मलाई चमचम
जनता को दो मिले रोटी, वो मलाई न सही
दिल हमारा भी है, हमको भी मुहब्बत क्यों न हो
कैस की साँस है हम में भले लैली न सही
जिंदगी में वफ़ा तो जोड़ है कमजोर न हो
प्रेम का वक्त घड़ी दो घड़ी काफी, लम्बी न सही
न हुई चीज़ सुलभ और न सस्ती यहाँ पर
मिले तो चीज़ सभी नकदी उधारी न सही
मय परस्ताँ थे, खुमे मय भी थे, कुछ फिर भी न थी
दौरे मय खूब चला था, भले साकी न सही
— कालीपद प्रसाद