क्यों रसाल का स्वप्न देखते..
क्यों रसाल का स्वप्न देखते ,
मैंने तो कीकर बोये थे ।
झुर्री पड़े ,पुराने चेहरे ।
उर में घाव सँजोये गहरे ।
शाप भला दे दते किसको,
गैर ,स्वयं के बच्चे ठहरे ।
वृद्धाश्रम में बैठ अकेले ,
धुँधली आँखो से रोये थे।
क्यों………………..
मेरे उर की पीड़ा गहरी ।
मत नैनों के पथ से बह री!
जिसको पूजा दैव समझकर,
वो पत्थर की मूरत ठहरी ।
मोहपाश में बंधकर हमने,
भावहीन रिश्ते ढोये थे ।
क्यों रसाल …………..
कुछ भूखे लोगों के बल पर ।
अपने चेहरे रोज बदलकर।
नेता जी संसद तक पहुँचे,
सिर्फ भर रहे हैं अपना घर ।
कई किसानों के घर बच्चे
आज पुनः भूखे सोये थे ।
क्यों रसाल …………….
………………… डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी