लघु कथा : विकृत मानसिकता
सुरभि का विवाह एक बहुत बड़े बिजनेस मैन से हुआ था। विवाह माता -पिता ने खुद देख कर किया था। सुरभि का पति हरप्रीत किसी न किसी बहाने से सुरभि को रोज प्रताड़ित करता था। कभी खाने की थाली उसके ऊपर फेंक देता, कभी दीवार पर पटक देता। इस प्रकार की प्रताड़ना से सुरभि का दो बार गर्भपात हो गया था लेकिन उसका ज़ुल्म कम न होता।
पहले खूब यातना देता और फिर गुस्सा शांत होने पर उसे बहुत प्यार करता, ज़ख्म पर मरहम लगाता, उसे प्यार से सहलाता, उसे होटल खाना खिलाने ले जाता, उसे महंगे -महंगे उपहार दिलाता, यहां तक कि विदेश भी घुमाने ले जाता। सुरभि यह सब पाकर खुश हो जाती और उसके ज़ुल्म के खिलाफ कभी आवाज ही नहीं उठाती, वह यही सोच कर संतुष्ट हो जाती कि प्यार भी तो बहुत करता है।
बहुत समय तक यह सिलसिला चलता रहा, सुरभि ने अपने माता -पिता को कभी कुछ भी नहीं बताया लेकिन एक दिन उसकी मौसी जो उसी शहर में रहती थी, बिना बताए उससे मिलने आ गई और उसने देखा कि उसके चेहरे और हाथों पर चोट के कई निशान हैं। उसने सुरभि से पूछा लेकिन उसने बहाने बना दिए लेकिन बार -बार पूछने पर सच बता दिया। उसकी मौसी ने उसके माता पिता को तुरंत बुलवाया और पुलिस में हरप्रीत के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई। घरेलू हिंसा के ज़ुल्म में हरप्रीत गिरफ्तार हो गया।
हरप्रीत की माँ अमेरिका से आई और सुरभि को समझाने की कोशिश की कि`हर औरत को किसी न किसी तरह का ज़ुल्म सहना पड़ता है, वह तो गुस्से में आकर मुझे भी मार देता था। तुम्हें अगर मारता है तो प्यार भी तो कितना करता है। वह तुम्हारा पति है कोई गैर तो नहीं”।
सुरभि शायद मान भी जाती लेकिन उसके माता -पिता ने एक न सुनी और सुरभि को अपने घर ले आये।
अब सुरभि रात -दिन पश्चाताप में रोती रहती है कि` उसने यह सब अपनी मौसी को बताया ही क्यों ”? कोई उसे समझाता है तो कहती है ‘मारता था तो प्यार भी तो करता था। माता-पिता समझाते हैं कि यह प्यार नहीं है, मानसिक विकृति है। किसी दिन तुम्हारी जान चली जाएगी तब क्या करोगी। सुरभि एक ही उत्तर देती है – वह जितनी यातना देता था उससे कहीं अधिक प्यार भी तो करता था।
— डॉ रमा द्विवेदी