“मौसम के अनुकूल बया ने, अपना नीड़ बनाया है”
कल केवल कुहरा आया था,
अब बादल भी छाया है।
हाय भयानक इस सर्दी ने,
सबका हाड़ कँपाया है।।
भीनी-भीनी पड़ी फुहारें,
झीना-झीना उजियारा।
आग सेंकता सरजू दादा,
दिन में छाया अँधियारा।
कॉफी और चाय का प्याला,
सबसे ज्यादा भाया है।
हाय भयानक इस सर्दी ने,
सबका हाड़ कँपाया है।।
आलू और शकरकन्दी भी,
सबके मन को भाते हैं।
गर्म-गर्म गाजर का हलवा,
खुश होकर सब खाते हैं।
कम्बल-लोई और कोट से,
कोमल बदन छिपाया है।
हाय भयानक इस सर्दी ने,
सबका हाड़ कँपाया है।।
हीटर-गीजर और अँगीठी,
गज़क, रेवड़ी-मूँगफली।
गर्म समोसे, टिक्की-डोसा,
अच्छी लगती हैं इडली।
मौसम के अनुकूल बया ने,
अपना नीड़ बनाया है।
हाय भयानक इस सर्दी ने,
सबका हाड़ कँपाया है।।
—
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)