ग़ज़ल
खामोशी से हमने अपने दिल की सारी बात बता दी
याद न वो आए हमको इस याद में सारी रात बिता दी
कब मांगे थे महल दुमहले कब मांगा था सोना चांदी
तेरी वफा की चाहत की थी उस चाहत को आग लगा दी
अब नाम तेरा कभी नहीं लेंगे भूले से भी ओ हरजाई
चिंगारी यादों की दबाकर उस पर अपनी खाक बिछा दी
जीते भी तो क्या कर पाते जब किस्मत भी साथ नहीं है
कभी तो याद करोगे मुझको सोचके तुम पे जान लुटा दी
कभी नाम लेकर तेरा ये दिल सौ सौ सजदे करता था
आज झुका सिर उठा नहीं फिर इसने अपनी शान मिटा दी
याद न करना याद न आना ‘जानिब’ तू इतना तो कर दे
अब आह दबा देंगे दिल में जो दिल ने है आह जगा दी
— पावनी ‘जानिब’, सीतापुर