गीतिका
कुछ यूँ हुआ असर तेरी प्यार भरी छुअन का,
रोम रोम खिल उठा गुस्से में जलते बदन का।
तेरे साँसों की तपन पिघला गयी मेरे गुस्से को,
और बना गयी प्यासा मुझे वो तेरे मिलन का।
सर्द रात की तन्हाई में जब तुम पास आये मेरे,
मिलन में खलल डालने लगा शोर ये कंगन का।
ना चाहते हुए भी तेरी बाँहों में समाती चली गई,
जैसे जमीं पर उतर आया पंछी नील गगन का।
सब दुःख दर्द अपने भूल गयी तेरी आगोश में,
बात करके तुमसे बोझ उतर गया मेरे मन का।
एक पल भी दूर नहीं रह सकती सुलक्षणा अब,
बन कर मीरा गुणगान करूँ मैं अपने किशन का।
©️®️ डॉ सुलक्षणा अहलावत