नन्हीं परी !
नन्ही परी!
मेरी नन्ही सी परी
है वो सोने सी खरी
है मासूम है अंजान
भय का नहीं ज्ञान
बस वो मुस्काती है
गीत कोई गाती है
काश वो न हो बड़ी
न लगे पहरों की झड़ी
ममता की छांव में
बस रहे मेरी पनाह में
दनिया से डर लगता है
सुरक्षित न शहर लगता है
हौंसले दरिंदों के हैं बड़े
पग पग है ताक में खड़े
अमानवता से भरे हुए हैं
अकल से लगता मरे हुए हैं
इनको राह दिखाए कौन
नेता सब, बस हैं मौन
पर सोचती हूँ अब ये
निडर तुम्हें बनाऊंगी
हालात से लड़ना सिखाऊंगी
कोमल हो माना मैने
वक्त आने पर दुर्गा बनना
सिखाऊंगी
हाँ हर हाल में जीना सीखाऊंगी मैं ।
कामनी गुप्ता ***
जम्मू !