“पाप गंगा में बहाने चल दिये”
आज वो फिर से नहाने चल दिये
पाप गंगा में बहाने चल दिये
पाप की गठरी उठाकर शीश पर
पुण्य मन्दिर में कमाने चल दिये
जिन्दगी भर जो भटकते ही रहे
रास्ते अब वो बताने चल दिये
दूसरों को बाँटते हैं ज्ञान जो
वो चरस का दम लगाने चल दिये
हाथ फैला भीख हैं जो माँगते
भाग्य लोगों का बनाने चल दिये
कैद करके राम औ रहमान को
अमन के पौधे उगाने चल दिये
रात में जुगनू बने बहुरूपिये
“रूप” लोगों को दिखाने चल दिये
—
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)