लघुकथा

अकेलापन

प्रमोद ने माइक्रोवेव में खाना गरम किया और और डाइनिंग टेबल पर बैठ कर खाने लगा |

जाने क्या बात थी  कुछ महीनों से उसे अकेलापन खलने लगा था |

वह अपने जीवन के बारे में सोचने लगा जवानी में उसने अपने जीवन में कभी कोई कमी महसूस नही की थी, वह अपने में ही मस्त था| उसे लगता था की जीवन में कहीं ठहर जाना सही नही है ,जैसे भंवर हर फूल का भरपूर लुत्फ़ उठता है वैसे है उसे जीवन जीना है इसलिए उसके जीवन में कई प्रेम प्रसंग हुए लेकिन वो किसी को लेकर गंभीर नही हुआ |

उन्ही दिनों उसके जीवन में सोनम आई वो बहुत ही सरल और सादगी पसंद थी| प्रमोद  उसकी खूबसूरती का दीवाना हो गया | सोनम उसकी कंपनी में ही काम करती थी |अपने  इस रिश्ते को लेकर गंभीर थी और इस रिश्ते को एक मुकाम तक ले जाना चाहती थी | लेकिन प्रमोद  का चंचल मन फिर भटकने लगा जिससे सोनम बहुत आहत हुई उसने नौकरी छोड़ दी और दुसरे शहर में चली गयी |

प्रमोद  का भटकना जारी रहा वह किसी भी रिश्ते में ज्यादा दिन तक नही रहता था उसके मित्रों और शुभचिंतकों ने उसे समझाया की ये चंचलता और भटकाव उसे एकाकीपन के अलावा उसे कुछ नही देगा पर जवानी के मद में चूर उसने किसी पर ध्यान नही दिया|

जैसे-जैसे उम्र बढती गयी जीवन में ठहराव की आवश्यकता अनुभव होने लगी उसे एक साथी की तलाश थी| लेकिन उसकी छवि ऐसी बन गयी थी की कोई भी लड़की उससे रिश्ता नही रखना चाहती थी |

अब वह अकेला रह गया था और उसका एकाकीपन उसे काटने को दौड़ता था | उसके भटकाव ने उसे  क्षणिक सुख तो दिए लेकिन उसके आसपास अकेलेपन की एक गहरी खाई खोद दी थी जिसमे वो अकेला भटक रहा था |

कल रात से जब से वो अपने मित्र की शादी से लौटा था तब से उसे ये खालीपन ज्यादा ही खल रहा था  वह सोच रहा था काश कोई उसका साथ देने वाला भी होता जो बस उसका होता और वो अपनी हर बात उससे शेयर कर पाता | खाना खाते हुए अचानक ही सोनम का चेहरा उसके आँखों के सामने घुमने लगा और चेहरे पर दर्द उभर आया |

 

पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर'

पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर' लेखक, विचारक, लघुकथाकार एवं वरिष्ठ स्तम्भकार सम्पर्क:- 8824851984 सुन्दर नगर, कोटा (राज.)