ग़ज़ल
माना कि ख़ार में हैं फूलों के प्यार में हैं
बगिया ये कल खिलेगी हम इंतज़ार में हैं
जब से है तुझको देखा इतने ख़ुमार में हैं
लगता है जैसे हर पल जश्ने-बहार में हैं
लाखों में तू है लेकिन हम भी हज़ार में हैं
इतना बता दे-क्या हम तेरे शुमार में हैं?
सुख-दुख में संग तेरे हर जीत-हार में हैं
वीणा है तू हमारी हम तार-तार में हैं
लफ़्ज़ों का एक दरिया हम बीच धार में हैं
तू है ग़ज़ल हमारी तो हम अशा’र में हैं
— डॉ. कमलेश द्विवेदी
मो.9415474674