“वचनों के कंगाल सुनो”
भाषण से बहलाने वालों, वचनों के कंगाल सुनो
माल मुफ्त का खाने वालों, जंगल के शृंगाल सुनो
बिना खाद-पानी के कैसे, खेतों में बिरुए पनपें
ठेकेदारों ने उन सबका हड़प लिया है माल सुनो
प्राण निछावर किये जिन्होंने आजादी दिलवाई थी
उन सबके वंशज गुलशन में आज हुए बेहाल सुनो
घेर लिये हैं चाँद-सितारे धरती के खद्योतों ने
पावस में खामोश हो गये कोकिल और मराल सुनो
भोली सोनचिरैय्यों के, चीलों ने गहने झपट लिए
अवश-विवश गौरय्या के कैसे सुधरें हाल सुनो
सीधे-सादे श्रम करते, मक्कारों की पौबारह है
अत्याचारों की चक्की में, पिसते माँ के लाल सुनो
दुनिया में बदनाम आजकल लोकतन्त्र का “रूप” हुआ
जाल बुन रहे हैं जनसेवक हो करके वाचाल सुनो
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)