गीत/नवगीत

गीत : गुजरात में कांग्रेस की हार

(गुजरात और हिमाचल में कांग्रेस की हार पर राहुल खान गांधी को समर्पित मेरी ताज़ी कविता)

खूब लगाया ज़ोर कुंवर ने, बाहें खूब समेटी थीं,
कुछ पटेल की भटकी नस्लें, जातिवाद पर ऐंठी थीं,

इक फ़िरोज़ का पोता, जबरन परशुराम अवतारी था
और ईसाई अम्मा का वो लाल जनेऊ धारी था,

फ़र्ज़ी हिन्दू शिवलिंगों पर नीर चढाने निकले थे,
मंदिर जा जाकर वोटों का बैंक बढ़ाने निकले थे,

संसद में सोने वाले गुजरात जगाने निकले थे,
विषधारी आरक्षण की विषबेल उगाने निकले थे

इफ्तारी हज़रत गरबा का ढोल बजाये बैठे थे,
पिद्दी राजा गद्दी वाले ख्वाब सजाये बैठे थे,

दस जनपथ पर बिलख रही हैं राहुल की महतारी जी
इटैलियन थाली पर देखो, पड़ा ढोकला भारी जी

जैसे ही सरताज बने दल के, अच्छे उपहार दिए
सिर मुंडते ही मोदी जी ने सिर पे ओले मार दिए

पाटीदारों को फुसलाया, लेकिन खेल अजीब हुआ,
साबरमती नदी का पानी तुमको नहीं नसीब हुआ

कुछ कांटे की टक्कर थी पर, काँटा तुमको थमा दिया
गुजराती जनता ने आखिर चांटा तुमको जमा दिया

जम जम का पानी भी छूटा, गंगाजल भी गँवा दिया
माँ का आँचल काम न आया, और हिमाचल गँवा दिया,

कांग्रेस के राजा लगता लेते हो कुछ सीख नही,
कुछ तो फूटी किस्मत, कुछ ये लक्षण भी तो ठीक नहीं

कवि गौरव चौहान कहे, जो बोया है सो काटोगे
हमें पता है थाईलैंड में जाकर मस्ती छांटोगे

कांग्रेस का पूरा कुनबा पाप न ये धो पायेगा
राहुल भैया रहने दो, अब तुमसे न हो पायेगा

— कवि गौरव चौहान