डोर
सभी को लग रहा था कि शमशेर हादसे के कारण अपना दिमागी संतुलन खो बैठा है।
वह एक कठपुतली कलाकार था। एक समय था कि अपनी कला के दम पर उसने कई सम्मान प्राप्त किए थे। पर धीरे धीरे उसकी कला का मोल समझने वाले लोग नहीं रहे। अब तो फाके की नौबत रहती थी। इसलिए बेटा भी मुंबई काम करने चला गया था।
शमशेर ने अब तक अपनी कठपुतलिययों को संभाल कर रखा था। वह उसके लिए किसी खजाने से कम नहीं थीं।
कल रात आग लगने से सब जल गईं। रात भर वह उनके लिए रोया। किंतु सुबह हुई तो बैठ कर गाने लगा।
“अरे काका क्यों दिल पर लेते हो। जो होना था हो गया।” पड़ोसी ने समझाया।
“बेटा यह तो मुक्ति का राग है। अब तक मोह की डोरी से बंधा था। आग ने वह डोर काट दी।”