पुरुष.. तुम क्या जतलाना चाहते हो ?
दशानन की तरह..
ओढ़ अनेकानन
खुद का अस्तित्व छुपा जाते हो
तुम क्या जतलाना चाहते हो ?
दिल में छुपा कर..
प्रेम क्यों खुद को..
भावना शून्य दिखलाते हो ।
तुम क्या जतलाना चाहते हो ?
बिन आंसू के..
दिखे सुबकना ।
भीतर क्यों घुटते जाते हो ।
तुम क्या जतलाना चाहते हो ?
त्याग की मूरत हो..
तुम भी नारी सम ।
पर चेहरे पर..
पाषाण सी सख्ती दिखलाते हो
पुरुष.. तुम क्या जतलाना चाहते हो ?
अंजु गुप्ता