सृजन सुख
जब मैं कविता में खोया होता हूँ
तो नीला आसमान रंगों से भर उठता है
हवा में महक आने लगती है
मैं मदहोश हो जाता हूँ
सामने फुदकती चिड़ियाँ
मेरे भीतर
संगीत भर देती हैं
मेरी लेखनी से निकले शब्द
तन्मय होकर नाचने लगते हैं
तब मैं स्वयम
नया आदमी हो जाता हूँ
और मैं
अपने आस पास भी
नया आदमी बना रहा होता हूँ
स्वर्णिम भविष्य
वर्तमान की ओट से झांककर
मुझे आश्वस्त करते हुए
आशीष देता है!
— अशोक दर्द