कवि और कलम
बारूद के ढेर पर बैठी दुनिया समझा कवि।
नफरतें सब धुल जाएँ प्रेमगीत सुना कवि।।
जंग की तैयारी में बन रहे हथियार नये नये।
जग से हथियार छुड़ा ,सौहार्द पकड़ा कवि।।
क्यूँ अधीर हुए बैठी है युद्ध के लिए दुनिया।
दास्तां बर्बादियों की इसको सुना कवि।।
मानवता दिलो दिमाग में इनके भर इस तरह।
झगड़े मन्दिर मस्जिद के सारे मिटा कवि।।
यह दुनिया खूबसूरत थी और यह खूबसूरत है।
कांटे नफरतों के चुन फूल प्रेम के उगा कवि।।
सच स्वार्थ का दुनिया को बताना फर्ज तेरा।
फसलें मुहब्बतों की इन्हें उगाना सिखा कवि।।
उजाला ही उजाला हो जाये सरहदों के दरमियां।
दीये ऐसे लफ्जों के अब तू जला कवि।।
लू आतंक की झुलसाने लगी है धरती को।
बनकर घनश्याम तू आतंक पे छा कवि।।
हाथ की लकीरों से मुक्कद्दर नहीं बनता।
मन्त्र मेहनत का इनको तू बता कवि।।
कोई हक छीने नहीं मजलूम का बाँटनेवाला।
कोई करे ऐसा तो जमाने को उकसा कवि।।
पहले बना तू दुनिया को जन्नत जैसी।
बेशक फिर रोज तू उत्सव मना कवि।।
कलम तलवार है तेरी मुंसिफ तू जमाने का।
मजलूम लाचारों को हक उनका दिला कवि।।
— अशोक दर्द