// इंतजार में .. //
// इंतजार में.. //
संसार के ये घने बादल
घुमड़ – घुमड़कर
घेरे मुझे, गर्जन करते हैं
बरसात की अविचल धारा बन
बिगोते चले जाते हैं
मैदान भूमि में,डटे रहते
जिंदगी का खेल खेलते
अविश्रांत खिलाड़ी हूँ मैं,
विजय का परिहास
और कितने दिन रहते हैं
काल की कठोरता में
मेरा भी हाथ क्यों न होगा
अमरता की अर्हता पाते
साधना के ये अक्षर …
परिणति का पात्र बनते
अपनी अस्मिता दिखाते
मानवता का रौनक
जरूर क्यों न बनेंगे..?