पढती हूँ आज
पढती हूँ आज
तुम्हारे मन के भावो को
दिल के जज्बातो को
कोरे पन्ने पर उतारे गये
हर एक शब्दो को
जिंदगी के उलझनो से लेकर
सुलझते हुये विकारो को
तुम्हारा प्रेम ,तुम्हारा समर्पण
बिताये हुये हर एक पलो को
हाथ से फिसलते हुये
समय के किमतो को
जिंदगी ने क्या दिया
क्या छिन लिया
मिलें आज तक सभी सम्मानो को
गुजरे लम्हे,गुजरे दिन
गुजरे हुये अफसाने को
क्या कुछ नही पढी आज
एक अलग ही सुकून सा मिला
पढकर इन सारी बात्तो को
इतने दिनो मे जिंदगी ने
इतना कुछ कर दिया कि
उलझी रही अपने ही किताबो में।
निवेदिता चतुर्वेदी निव्या