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सदाबहार काव्यालय-3

गीत

वक्त

 

ऐ वक्त नहीं तू क्यों थकता?
हरदम ही चलता रहता है,
दम ले-ले घड़ी भर रुक कर तू,
मत सोच कौन क्या कहता है?

 

दिन भर चल-चलकर सूरज भी,
जब शाम ढले थक जाता है,
फिर दूर कहीं वह पश्चिम में,
बस रजनी में खो जाता है.

 

चंदा भी रोज नहीं उगता,
घर अपने ही रुक जाता है,
फिर तू ही नहीं क्योंकर रुकता,
तेरा जग से क्या नाता है?

 

सुनकर मुझ मूर्ख की बातें,
फिर वक्त बड़ा मुस्काया है,
तू साथ मेरे बस चलता चल,
कहकर मुझको समझाया है.

 

धरती से लेकर अंबर तक,
पर्वत से लेकर समंदर तक,
देवों से लेकर दानव तक,
पशुओं से लेकर मानव तक.

 

जो साथ चला मेरे सुन लो,
उसने ही मंजिल पायी है,
जिसने भी मेरी सुधि ली ही नहीं,
बस हरदम मुंह की खायी है.

 

जो सोया उसने खोया है,
कुछ पाने को कुछ करना है,
झर-झर बहता झरना कहता,
जीवन हरदम ही चलना है.

 

जीवन-सरगम हर पल बजती
नित गीत नए मैं गाता हूं,
कुछ देर वक्त के साथ चला,
खुदको मंज़िल पर पाता हूं.

 

राजकुमार कांदु

 

हम उन सभी कवियों के अत्यंत आभारी हैं, जो सदाबहार काव्यालय के लिए अपनी काव्य-रचनाएं प्रेषित कर रहे हैं. आप एक से अधिक काव्य-रचनाएं भी भेज सकते हैं, लिखते रहिए, इस पते पर भेजते रहिए.

 

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*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244