दर्द
प्यार में कोई शर्त तो नहीं होती
फिर क्यों बांध दिया है मुझको शर्तों में
हर बात पर यूँ जिद तो अच्छी नही होती
जिद को बना लिया घर क्यों जिंदगी में
वजह बेवजह यूँ तो रुलाया न करो
दिल से हमें …….. ऐ जांनशी
हम तो बंधे हैं सिर्फ तुम्हारे बंधन में
आंसुओं ने सीख लिया है मुस्कराना
हंसी भी लगती है कैद किसी तहखाने में
उम्र ऐ दराज मांग तो लेते अपने खुदा से
इश्क़ ने ढूंढ ली है खुशी मौत के फ़साने में
होठों पर कैसे सज पाएंगे गीत प्यार के
दर्द ने सजा लिए हैं अफ़साने आंखों में ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़