गज़ल
मुसाफिर रहे ता-उम्र ना घर हमने बनाया
मंज़िल तुझे, तुझे ही सफर हमने बनाया
शोहरत अता की अपने बेपनाह इश्क से
तेरा हुस्न काबिल-ए-ज़िकर हमने बनाया
गुज़रा ना था इस राह से हमसे कोई पहले
इस रास्ते को राहगुज़र हमने बनाया
सजदा किया बुतों को और बना दिया खुदा
झुक कर तेरी चौखट को दर हमने बनाया
तनहाईयों में भर के कुछ यादों के सुर्ख रंग
अक्स तेरा शाम-ओ-सहर हमने बनाया
— भरत मल्होत्रा
Behtreen