तेरी याद बहुत आती है
छींक आने से पहले तेरी बहुत याद आती है
जीवन की आपाधापी में थक जाता हूं
उबले हुए पानी में आलू की तरह पक जाता हूं
सुनो जैसे आईने के सामने दुल्हन खुद को सजाती है
छींक आने से पहले तेरी बहुत याद आती है
सूरज के सामने भी मैं सपनों में खो जाता हूं
लोग कहते हैं पता नहीं कैसा हो जाता हूं
लगे ऐसा जैसे सावन आने पर चिरैया कैसे इतराती है
छींक आने से पहले तेरी बहुत याद आती है
कल-कल करती नदी देखूं तो बहुत कुछ कहती है
मेरे खयालों में,मेरे जिगर में बस तू ही रहती है
तेरी पायल की छन-छन कितनी बार रातों को जगाती है
छींक आने से पहले तेरी बहुत याद आती है
भूल नहीं पाया हूं आज तक किसी भी मुलाकात को
अक्सर निकल जाता हूं अकेला ही मैं रात को
मेरी मां दरवाजे पर खड़ी डांटती है मुझे,बहुत समझाती है
छींक आने से पहले कंबखत तेरी बहुत याद आती है
अखबारों में आजकल मैं बहुत कम बिकता हूं
कारण यही है कि मैं बस तेरे बारे में लिखता हूं
मेरी कागज कलम भी तुझी से मोहब्बत जताती है
कमबखत छींक आने से पहले तेरी बहुत याद आती है