सिलवटें
पड़ रही है
मन पर
उम्र की सिलवटें
मैं चाह कर भी
नवयौवना सी
सज नहीं पाती
मन के किसी कोने में
ये अधुरापन हावी रहता है
चालिस बसन्त के बाद
तन और मन की स्थिति
शायद ऐसी ही होती है
बन संवर कर जब भी
देखती हूँ आईना
मुंह चिढातें है
कुछ सफेद बाल
आंखों के नीचे
नींद की कमी से हुये
काले घेरे
चेहरे पर अजीब सी थकावट
रोज काम की फेरहिस्त बनाती हूँ
पर कुछ काम मन पर बोझ बनकर
तन पर हावी हो जातें है
फिर भरी दोपहर में सब कुछ
ऐसे ही छोड़ बेतक्कलुफी से
चादर तान कर
उम्र की सिलवटों को चाद्दर में डाल देती हुँ
अब बदल गये है
मन के भाव भी तन के साथ।।
अल्पना हर्ष, बीकानेर