लघुकथा

अंतर्मन

क्या हम मिल सकते है आज रात, कहीं बाहर? उत्तर की प्रतीक्षा में तुम्हारा मित्र!” ‘गुड़ मॉर्निंग’ के साथ लिखे शब्द फिर से उससे खेलने लगे थे।

पिछले कुछ महीनों से पति की बेरुखी और बेटी के पढ़ाई के लिये ‘हॉस्टल’ जाने के बाद, जीवन में आये नितांत खालीपन को भरने के लिये उसने ‘सोशल साईट’ की ओर रुख किया था। वहीँ ये ‘मित्रता अनुरोध’ आया था जिसे उसने सहज ही स्वीकार कर लिया और फिर जल्दी ही उसकी रसभरी भाषा, प्रेम-आतुर वार्तालाप से वह भी उसमें दिलचस्पी लेने लगी थी। उसे स्वयं भी पता नहीं लगा कि कब वह ‘चैटिंग’ के जरिये उसके रंग में रंग गयी थी लेकिन आज इन शब्दों पर वह असमंजस के दोराहे पर आ खड़ी हुयी थी।

“नही यूँ एक अजनबी पुरुष के साथ ऐसे मिलना ठीक नही!” आईने में मुस्कराते अपने ही अक़्स को देखकर सकपका गयी वह।

“लेकिन अजनबी कहाँ, वह तो तुम्हारा मित्र है न!” उसके अक़्स की मुस्कान बरकरार थी।
“हाँ, वह तो है लेकिन मेरा इस इस तरह घर-परिवार की सीमाओं से निकल बाहर जाना ठीक नही।” उसने अपनी सीमाएँ बतानी चाही।

“लेकिन तुम्हारी भी कुछ् जरूरतें है जो पूरी नहीं हो पाती, कब तक पति की बेरुखी के साथ जिओगी।” आईना अब मुखर होने लगा था।

“जरूरतें!…. लेकिन एक पत्नी के साथ युवा होती बेटी की माँ हूँ मैं, मेरे संस्कार मुझे इसकी इजाज़त नही देते।”

“ऑन लाइन हरी बत्तियों के बीच, लिखे शब्दों में जाने कितनी बार अपनी सीमायें लांघने के बाद अब वास्तविक धरातल पर तुम्हे संस्कार की लाल बत्तियां नज़र आ रही है।” आईना खिलखिला उठा। “जाओ अपनी जिंदगी जिओ, तोड़ दो सारी मर्यादा।”

“नहीं!” वह सिहर उठी। “यदि मैं भी वही करूँ जो वे करते है तो क्या फर्क रह जायेगा मुझमें और उनमें!”

“तो जियो वही घुटन भरी जिंदगी।” आईना अट्टाहस कर उठा।

अट्ठहास ने सहज ही मन में एकाएक आक्रोश पैदा कर दिया और और कुछ ही क्षण में वह आक्रोश से मुक्त हो, दोराहे से वापिस लौट रही थी।

“…….. आखिर मैं सफ़ल हो ही गया।” जमीन पर कई टुकड़ो में बिखरा आईना अब भी मुस्करा रहा था।

विरेंदर ‘वीर’ मेहता

विरेन्दर 'वीर' मेहता

विरेंदर वीर मेहता जन्म स्थान/निवास - दिल्ली सम्प्रति - एक निजी कंपनी में लेखाकार/कनिष्ठ प्रबंधक के तौर पर कार्यरत। लेखन विधा - लघुकथा, कहानी, आलेख, समीक्षा, गीत-नवगीत। प्रकाशित संग्रह - निजि तौर पर अभी कोई नहीं, लेकिन ‘बूँद बूँद सागर’ 2016, ‘अपने अपने क्षितिज’ 2017, ‘लघुकथा अनवरत सत्र 2’ 2017, ‘सपने बुनते हुये’ 2017, ‘भाषा सहोदरी लघुकथा’ 2017, ‘स्त्री–पुरुषों की संबंधों की लघुकथाएं’ 2018, ‘नई सदी की धमक’ 2018 ‘लघुकथा मंजूषा’ 2019 ‘समकालीन लघुकथा का सौंदर्यशस्त्र’ 2019 जैसे 22 से अधिक संकलनों में भागीदारी एवँ किरदी जवानी भाग 1 (पंजाबी), मिनी अंक 111 (पंजाबी), गुसैयाँ मई 2016 (पंजाबी), आदि गुरुकुल मई 2016, साहित्य कलश अक्टूबर–दिसंबर 2016, साहित्य अमृत जनवरी 2017, कहानी प्रसंग’ 2018 (अंजुमन प्रकाशन), अविराम साहित्यिकी, लघुकथा कलश, अमर उजाला-पत्रिका ‘रूपायन’, दृष्टि, विश्वागाथा, शुभ तारिका, आधुनिक साहित्य, ‘सत्य की मशाल’ जैसी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित। सह संपादन : भाषा सहोदरी लघुकथा 2017 (भाषा सहोदरी), लघुकथा मंजूषा 3 2019 (वर्जिन साहित्यपीठ) एवँ लघुकथा कलश में सम्पादन सह्योग। साहित्य क्षेत्र में पुरस्कार / मान :- पहचान समूह द्वारा आयोजित ‘अखिल भारतीय शकुन्तला कपूर स्मृति लघुकथा’ प्रतियोगिता (२०१६) में प्रथम स्थान। हरियाणा प्रादेशिक लघुकथ मंच द्वारा आयोजित लघुकथा प्रतियोगिता (२०१७) में ‘लघुकथा स्वर्ण सम्मान’। मातृभारती डॉट कॉम द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता (२०१८) ‘जेम्स ऑफ इंडिया’ में प्रथम विजेता। प्रणेता साहित्य संस्थान एवं के बी एस प्रकाशन द्वारा आयोजित “श्रीमति एवं श्री खुशहाल सिंह पयाल स्मृति सम्मान” 2018 (कहानी प्रतियोगिता) और 2019 (लघुकथा प्रतियोगिता) में प्रथम विजेता।