कविता

खामोशियाँ…

बड़ी उदास थी वो
न जाने कौन सा गम ??
समेट रखा था उसे आगोश में जबरन
एकदम गुमसुम

मैंने कहा,,,
ऐसी क्यों हो तुम?
क्यों नहीं कोई ख्वाब बुन लेती
उत्साहपूर्ण चमचमाता हुआ
पर खामोश लव उसके
मेरे कहने पर भी न हिले

फिर कहा मैंने !
आखिर इतनी चुप्पी क्यों ?
तुम इंसान हो या बुत
अकेलेपन की नीरसता मौन व्याकुलता में
क्या दम नहीं घुटता तुम्हारा

मेरे नाराज सवाल ??
बार-बार मांग रहे थे जवाब
आखिर विजय का हुआ शंखनाद
खोली उसने अपनी जुवान
कहा,,,,
अंतरात्मा तो कब के मर चुकी मेरी
एक जिन्दा लाश क्या जवाब देगी
ये शरीर बस ढो रही हूं
मान-मर्यादा और औरत होने के बोझ में
उफ !
अबतक वो चुप थी…..
अब मैं खामोश स्तब्ध !

*बबली सिन्हा

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