गजल
क्या बची है जमाने में वफा कोई
है इस दर्द-ए- दिल की दवा कोई
मिलता है जो अपना सा लगता है
क्यूं भला मेरे जैसा ना हुआ कोई
वजूद रखते नहीं किसी के होने का
गुमां खु.दी कब तलक हैै रहा कोई
अपने में रहने की आदत है तुझे
तन्हाई को दे रहा तू धुंआ कोई
अबके सावन बरसा भीगी नहीं मैं
गहरा गया है अश्कों से रिश्ता कोई
तकती हूँ फलक अक्सर,आस लिए
मेरी किस्मत, टूटा ना सितारा कोई
सुना है रंग लाती हैं कोशिशें कभी
गर होगा मेरे हक में फैसला कोई
बांधकर उम्मींद कबसे बैठी हूँ
खाएगा तरस गर होगा खुदा कोई
— लक्ष्मी थपलियाल
देहरादून,उत्तराखँड
२०-१२-१७