गीत “सुख का सूरज उगे गगन में”
मन का सुमन हमेशा गाये, अभिनव मंगल गान।
अपनी कुटिया बन जाएगी, फिर से विमल-वितान।।
उगें नये पौधे बगिया में, मिले खाद और पानी,
शिक्षा के भण्डार भरे हों, नर-नारी हों ज्ञानी,
तुलसी, सूर, कबीर सुनाएँ, राम कृष्ण की तान।
अपनी कुटिया बन जाएगी, फिर से विमल-वितान।।
ललनाएँ सीता जैसी हों, भरत-लखन से भाई,
वीर शिवा जैसे प्रसून हों, कलियाँ लक्ष्मीबाई,
आजादी के परवानों का, होगा जब सम्मान।
अपनी कुटिया बन जाएगी, फिर से विमल-वितान।।
चिंगारी आतंकवाद की, भड़के नहीं वतन में,
पौध न अब अलगाववाद की, उपजे कहीं चमन में,
इन्सानों की बस्ती में, शैतान न हों मेहमान।
अपनी कुटिया बन जाएगी, फिर से विमल-वितान।।
सुख का सूरज उगे गगन में, घन अमृत बरसायें,
विश्व गुरू बनकर हम जग को, पावन पथ दिखलायें,
तब सचमुच ही कहलाएगा, मेरा भारत देश महान।
अपनी कुटिया बन जाएगी, फिर से विमल-वितान।।
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)