जब भी पीकर तुम आते हो (ग़ज़ल)
जब भी पीकर तुम आते हो।
हंगामा ही बरपाते हो।
भूल नहीं पाए तुम अब तक।
खाबों में मिलने आते हो।
जज्ब हुए हो ऐसे दिल में।
जख्म हमारे सहलाते हो।
रूठी हूँ मैं जब-जब तुमसे।
नज़्म मेरे दिल की गाते हो।
खुशियां तुम देने की खातिर।
चुपके से गम पी जाते हो।
जब है मयस्सर तुम्हें मुहब्बत।
पैमाने क्यूँ छलकाते हो।
दर्द शिकायत अक्सर लाये।
अब के देंखो क्या लाते हो।
हिज्र कलेजा फूंके “गुंजन”।
क्यूँ तुम इतना सुलगाते हो।
*अनहद गुंजन 21/12/17*