खट्ठा-मीठा : आत्मचिन्तन शिविर
हम अभी तक इतना ही जानते थे कि बंदीगृहों (जेलों) का उपयोग अपराधियों को दंड भुगतने, अपने पापों का प्रायश्चित करने और उनको सुधार करने का अवसर देने के लिए किया जाता है। लेकिन एक नया दिव्य ज्ञान कल प्राप्त हुआ कि जेल का उपयोग आत्मचिंतन शिविर के रूप में भी किया जा सकता है।
मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ। यह दुर्लभ सलाह चारा-चोर लालू प्रसाद यादव को दोषी घोषित करके बंदीगृह भेजते समय माननीय न्यायाधीश ने दी है। उन्होंने लालू प्रसाद से कहा है कि जेल में अपनी करतूतों पर चिन्तन करें कि उन्होंने जो किया वह कहाँ तक उचित था। न्यायाधीश महोदय ने यह सलाह इसलिए दी है कि लालू प्रसाद को बाहर अत्यन्त व्यस्तता के कारण चिन्तन करने का समय नहीं मिल पाता होगा।
इस बहुमूल्य सलाह के लिए माननीय न्यायाधीश का अभिनन्दन। पर मुझे शक है कि लालू प्रसाद इस सलाह को कभी गम्भीरता से लेंगे। हालांकि उनके पास चिन्तन करने के लिए कई कारण हैं- जैसे जनसंख्या नियंत्रण के प्रचार के बीच नौ-नौ सन्तानें पैदा करना, उनको उचित और पर्याप्त शिक्षा न दिलवाना, बच्चों को भ्रष्टाचार करने की तिकड़में सिखाना, अपने राजनैतिक सहयोगियों को धोखा देना आदि-आदि।
मुझे तो लगता है कि जेल में रहते हुए भी लालू प्रसाद आत्मचिन्तन करने के बजाय अपने अन्य कारागारी साथियों के साथ यही तिकड़में भिड़ाने का चिन्तन करेंगे कि किस तरह जेल से जल्दी से जल्दी बाहर आया जाये और फिर अपने पुराने कामों में संलग्न हुआ जाये। उनका शरीर जिस चिकनी मिट्टी से बना है उस पर ऐसी सलाहों का कोई प्रभाव होगा, इस बात पर मुझे सन्देह है।
वैसे कारावास में चिन्तन करने की सारी सुविधायें उपलब्ध होती हैं। नित्य समय पर बना हुआ भोजन, काम-काज की कोई चिन्ता नहीं (बशर्ते उनको सश्रम कारावास न मिला हो), बीच में कोई डिस्टर्ब करने वाला भी नहीं। यदि लालू जी ने इस स्वर्णिम अवसर का लाभ नहीं उठाया, तो यह उनकी गलती होगी। देखना है कि इस आत्मचिंतन शिविर का क्या परिणाम निकलकर आता है।
— बीजू ब्रजवासी
पौष शु 6, सं 2074 वि (24 दिसम्बर 2017)